विचार: छत्तीसगढ़ भाजपा में नए युग की शुरुआत…
भाजपा ने छत्तीसगढ़ में प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया है। नए अध्यक्ष की जिम्मेदारी अरुण साव को सौंपी गई है। अरुण साव बिलासपुर के सांसद हैं। क्या साव जननेता हैं? या सीएम फेस हैं? फिलहाल ऐसा नहीं है। कुछ ऐसी ही परिस्थिति जुलाई 2002 में बनी थी। तब लखीराम अग्रवाल भाजपा के अध्यक्ष थे। उनके स्थान पर डॉ. रमन सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। लखीराम राज्य के प्रभारी बनाए गए थे। तब क्या रमन जननेता थे? या सीएम फेस थे? जवाब ‘नहीं’ है।
छत्तीसगढ़ में भाजपा 20 साल पहले की स्थिति में आ गई है। नया राज्य बनने के बाद अजीत जोगी सीएम बने थे। सपनों के सौदागर अजीत जोगी। उन्होंने लोगों को सपने दिखाए। नए राज्य में आधारभूत संरचना की नींव रखी। इंजीनियर, प्रोफेसर, आईपीएस और आईएएस रहे जोगी ने तीन साल में कुछ बेहतर करने की कोशिश की, लेकिन इस दौरान अराजकता का माहौल बनने लगा था। महज तीन साल में ही लोगों ने दूसरा विकल्प तलाश करना शुरू किया।
जब लोग विकल्प तलाश रहे थे, तब भाजपा के पास विकल्प की कमी थी। किसके चेहरे पर चुनाव लड़ें? तब तीन चेहरे थे। दिलीप सिंह जूदेव, रमेश बैस और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह। रमन सिंह ने दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा को हराया था, इसलिए अटल सरकार में केंद्रीय राज्यमंत्री बने थे। हालांकि ऐसा कुछ नहीं कर पाए जिससे उनकी छवि जननेता की बनती। जब उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, तब लोग ठीक से उन्हें पहचानते भी नहीं थे।
नए अध्यक्ष के रूप में जब अरुण साव का नाम आया, तब भी लोगों में कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया रही कि क्या ये चुनाव जिताएंगे? क्या भाजपा के पास कोई और विकल्प नहीं था? आरएसएस की पृष्ठभूमि के भाजपा नेताओं की मानें तो साव चुनाव जिताने वाला चेहरा नहीं, लेकिन बदलाव का चेहरा हैं। लंबे समय तक कुछ चुनिंदा चेहरों को देखकर कार्यकर्ता घर बैठ गए थे। पार्टी ने चेहरा बदला है। इस उत्साह में अब कार्यकर्ता तख्तापलट करने के लिए तैयार हैं।
छत्तीसगढ़ भाजपा में कुछ-कुछ 20 साल पहले जैसी स्थिति है। विधानसभा चुनाव के सवा साल पहले रमन अध्यक्ष बने थे और अब साव। उस समय अटल का चेहरा था और आज मोदी हैं। कहीं न कहीं अराजकता का भी माहौल है। कर्मचारी नाराज हैं। रोजगार और बेरोजगारी भत्ते के इंतजार में युवा वर्ग भी निराश है। कानून व्यवस्था की स्थिति कुछ ठीक नहीं है। हां, नक्सल मोर्चे पर थोड़ी शांति है। कांग्रेस के भीतर भी खींचतान है।
रमन जब प्रदेश अध्यक्ष बने थे, तब कार्यकर्ताओं के सामने ऐसी स्थिति नहीं थी कि वे कुछ चेहरों को देखकर उकता गए हैं। वर्तमान में ऐसी स्थिति बन गई थी। 18-20 साल से उन्हीं लोगों के हाथ में नेतृत्व था। ऐसे चेहरों को मौका नहीं मिल रहा था, जो कह सकें कि उन्हें योग्यता के आधार पर पद मिला। यही वजह है कि भाजपा ने न केवल प्रदेश अध्यक्ष बदला, बल्कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को हटाकर नारायण चंदेल को जिम्मेदारी सौंप दी। दोनों ही ओबीसी वर्ग से हैं।
साव और चंदेल की नियुक्ति एक तरह से एक युग का या यूं कहें कि रमन-सौदान युग का अवसान है। रमन-सौदान युग इसलिए क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद रमन सिंह मुख्यमंत्री बने और 18 साल तक इस पद पर बने रहे। इस बीच सत्ता और संगठन के फैसले सौदान सिंह या रमन सिंह की मर्जी से लिए गए और जब सरकार चली गई, तब भी उनकी चली। धरमलाल कौशिक को नेता प्रतिपक्ष बनाने की बात हो या विक्रम उसेंडी, फिर बाद में विष्णुदेव साय को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का निर्णय हो, पीछे रमन और सौदान सिंह ही थे।
2018 में सरकार जाने के बाद में भाजपा चार विधानसभा उपचुनाव भी हारी। नगरीय निकाय और त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन रहा। ऐसे में यह तय करने की बारी आ गई थी कि अब नेतृत्व नए हाथों में सौंप दी जाए। इसकी शुरुआत सौदान सिंह की छत्तीसगढ़ की विदाई के साथ हो गई थी। चरणबद्ध तरीके से बदलाव का दौर शुरू हुआ और इस तरह भाजपा ने साव का नाम तय किया। आरएसएस बैकग्राउंड होने के साथ-साथ साव पढ़े-लिखे हैं। कानूनविद रहे हैं। साव के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अब आगे प्रदेश की कार्यसमिति से लेकर जिले और मोर्चा में भी नई टीम बैठाने की तैयारी है। यह सब कुछ ही दिनों में हो जाएगा।
भाजपा में अब ज्यादातर नए चेहरे शामिल करने की तैयारी है। नए और युवा। पुराने बुजुर्गों को या जो लगातार पद में रहे हैं, उन्हें हटाया जाएगा। संगठन के साथ-साथ विधानसभा चुनाव में भी यह देखने को मिलेगा। कुछ को छोड़ दें तो 90 सीटों में से 90 प्रतिशत तो नए चेहरे ही होंगे। इनमें अप्रत्याशित रूप से कार्यकर्ताओं को मौका मिल सकता है। हालांकि इसमें पार्टी की शर्त यही होगी कि वह संघर्षशील हो।
क्षेत्रीय संगठन महामंत्री के रूप में आमद देने के बाद अजय जामवाल जिस तेजी में हैं, उससे यह आंकलन किया जा सकता है कि अब आने वाले दिनों में भाजपा चुपचाप बैठकर इंतजार करने की स्थिति में नहीं है। जामवाल के आते ही प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष दोनों बदल दिए गए। दिल्ली से लौटे और संभागों की बैठक शुरू कर दी। इस बदलाव के सूत्रधार जामवाल ही हैं। उनके आने के बाद जिस तरह से बदलाव शुरू हुए हैं, उससे कार्यकर्ताओं में उत्साह है और माना जा रहा है कि वे ही आने वाले समय में सत्ता में वापसी के भी सूत्रधार बनेंगे।