भक्ति ज्ञान वैराग्य के साथ विवेक भी आवश्यक, इसकी कमी से सती का भी कल्याण नहीं हुआ: अच्युत प्रपन्नाचार्य
- जब पिता-पुत्र, भाई-भाई और पति-पत्नी का स्वर मिले तो घर में कलह नहीं होगी
व्यासनगर। श्रीमद भागवत महापुराण कलियुग के लिए है। हमारे ऋषि मुनियों ने इस पर शोध किया है। सतयुग में तो सभी ज्ञानी थे, सात्विक थे, लेकिन कलियुग में इसकी कल्पना नहीं कर सकते। ऐसे में ईश्वर की भक्ति का माध्यम श्रीमद भागवत कथा है। यह भी जानना जरूरी है कि भक्ति ज्ञान और वैराग्य ही पर्याप्त नहीं है। विवेक भी जरूरी है। माता सती जितनी भक्ति, ज्ञान और वैराग्य किसी और में कहां होगी, लेकिन विवेक की कमी के कारण उनका भी कल्याण नहीं हुआ।
व्यासनगर में आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के पहले दिन जगद्गुरु स्वामी अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने कलियुग में ईश्वर भक्ति का रास्ता बताया। उन्होंने कहा कि जब कलियुग प्रारंभ हुआ, तभी संतों ने यह जान लिया कि यह घोर कलियुग है।
इसमें भाई-भाई, पिता-पुत्र और पति-पत्नी का स्वर नहीं मिलता, इसलिए घरों में कलह होता है। सबका स्वर एक हो तो घरों में कलह नहीं होगा। दो ईश्वर हैं। एक नारायण और दूसरे शिव। दोनों ने ही नारियों को सम्मान दिया। यह हमारे धर्म का संदेश भी है, जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता वास करते हैं।
स्वामी अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने कहा कि भगवान भाव चाहते हैं। वे चाहते हैं कि लोग मन से जुड़ें, लेकिन लोग तन से जुड़ते हैं। निर्मल के बजाय निर्मल तन लेकर जाते हैं। अच्छे कपड़े पहनकर परफ्यूम लगाकर जाते हैं। जितनी पत्नी स्वयं लक्ष्मी हैं, उन्हें धनराशि अर्पण करते हैं।
साईं बाबा जीवनभर फकीरी में रहे। अब उनके नाम पर धनराशि जुटाकर हम उनके संदेशों के विपरीत काम कर रहे हैं। इससे पहले पंडित भरत व्यास के निवास से कलश यात्रा निकली। इसके बाद वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा-अनुष्ठान प्रारम्भ हुआ। श्री राम कथा सत्संग यू ट्यूब चैनल पर कथा का लाइव प्रसारण किया जा रहा है।